गढबोर का श्री चारभुजानाथ मंदिर
मित्रो आज में आपको जिस स्थान के बारे में बताने जा रहा हु उसकी चर्चा भी करते हुए मुझे एक भव्यता और आनंद की अनुभूति होती है। राजस्थान के राजसमन्द जिले के गरबोर गाँव में स्थित श्री चारभुजा जी का मंदिर राजस्थान मेवाड़ के चारधाम में से एक है । मंदिर का सोंदर्य अनुपम है । यह मंदिर श्री कृष्ण जी का बहुत ही सुन्दर मंदिर है जिसमे भगवन अपने चारभुजा स्वरुप में विराजमान है । चारभुजा का अर्थ वह जिसके चार हाथ है । प्रभु की मूर्ति काले पत्थर से बने गयी है जिसमे नयन स्वर्ण के है। गर्भ गृह के मुख्य द्वार पर सोने की परत चढ़ी हुई है और अन्दर भी अनेक स्थानों पर सोने का कार्य किया हुवा है। यहाँ आने पर अपूर्व आनंद की प्राप्ति होती है एवं मन को बहुत शांति मिलती है । आरती एवं भोग के दोरान बजने वाले नगाड़े परमात्मा के साक्षात्कार का अप्रतिम अनुभव कराते है। महीने में एक दिन अमावस्या को विशेष दर्शन रहते है तथा बड़ी संख्या में दर्शनार्थी दर्शन के लिए आते है अमावस्या के एक रात पहले चतुर्दशी की रात को भगवन मीराबाई से मिलने के लिए जाते है । मृदुंग थाल संगीत के साथ प्रभु की एक प्रतिमा को पास ही स्थित मीराबाई के मंदिर ले जाया जाया है । यह नज़ारे अद्भुत देखने योग्य होता है । कुछ समय पश्चात प्रभु की प्रतिमा को पुनः मंदिर लाया जाता है तथा आरती की जाती है ।
यह मान्यता है की जब श्री कृष्ण जी ने उध्दव जी से गोलोक जाने की इच्छा जाहिर की तब उध्दव जी ने कहा की आपके परम भक्त पाण्डव और सुदामा नाम के गौप आपके गौलोक पधारने की खबर सुनकर प्राण त्याग देंगे | ऐसे में श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा से स्वयं की एवं बलराम महाराज की दो मूर्तिया बनवाई, जिसे राजा इन्द्र को देकर कहा की ये मूर्तिया पाण्डव युधिष्ठिर व सुदामा के नाम के गौप को सुपूर्द कर उनसे कहना की ये दोनों मूर्तिया मेरी हैं और मै ही इनमे हूँ | प्रेम से मूर्तियों का पूजन करते रहे, कलयुग में मेरे दर्शन व पूजा करते रहने से मैं मनुष्यों की इच्छा पूर्ण करूँगा और सुदामा का वंश बढ़ाऊंगा |
श्री कृष्ण की मूर्ति पाण्डव युधिष्ठिर को और बलदेव भगवान की मूर्ति सुदामा गौप को दे दी । पाण्डव और सुदामा दोनों उन मूर्तियों की पूजा करने लगे | वर्तमान में गढबोर में चारभुजाजी के नाम से स्थित प्रतिमा पाण्डवो द्वारा पूजी जाने वाली श्री कृष्ण की मूर्ति है तथा पास ही स्थित सेवन्त्री गॉव में श्री रूपनारायण के नाम से स्थित प्रतिमा सुदामा द्वारा पूजी जाने वाली श्री बलराम की मूर्ति हैं | किदवंती है कि जब पाण्डव हिमालय की ओर जाने लगे तो श्री कृष्ण की मूर्ति को पानी में छिपा गए ताकि कोई इसकी पवित्रता को खंडित नहीं कर सके।
कई वर्षो बाद जब राजपूत बोराना के प्रमुख गंगदेव, जतकालदेव और कालदेव ने मिलकर गढबोर की स्थापना की तब गंगदेव को एक रात सपना आया कि पानी में से चारभुजा नाथ की प्रतिमा निकलकर मंदिर में स्थापित कर दी जाये | यह भी सुनने को मिलता है की अत्याचारियों के अत्याचारों से बचने के लिए बोराना राजपूतों ने इस प्रतिमा को जल प्रवेश करा दिया, जब नाथ गुंसाइयों द्वारा इसे निकाल कर पूजा के लिए प्रतिष्टित कर दिया गया | युद्ध आदि से मूर्ति की रक्षा के लिए कई बार चारभुजा जी की मूर्ति को बचने के लिए जनमग्न किया गया |मेवाड़ राजवंश ने बार-बार इस प्रतिमा की सुध ली और इसे बचाने के लिए सब कुछ दाव पर लगा दिया | महाराणा संग्रामसिह, जवानसिह, स्वरुपसिह ने तो मंदिर की सुव्यवस्था के साथ-साथ जागीरे भी प्रदान की | मंदिर के पास ही गोमती नदी बहती है|
यहाँ विशेष रूप से आरती के दौरान जब गुर्जर परिवार के पुजारी जिस प्रकार से मूर्ति के समक्ष खुले हाथो से जो मुद्रा बनाते है और आरती के दौरान जिस प्रकार नगाड़े और थाली बजती है वो पूर्णत वीर भाव के प्रतिक है शायद इसीलिए चारभुजा जी की उपासना मुख्यत राजपूतो और गुर्जरों द्वारा विशेष रूप से की जाती थी | चारभुजा जी की आरती और भोग लगभग श्रीनाथ जी की तरह ही है किन्तु चारभुजा जी के दर्शन सदैव खुले रहते है अर्थात उनके दर्शन का वैष्णव सम्प्रदाय की पूजा पद्दतियो की भाँती समय आदि नहीं है|
चारभुजानाथ जी में दो प्रसिद्द मेले भरते है जिसमे पहला है प्रतिवर्ष भाद्रपद शुकल एकादशी ( जल झुलनी एकादशी ) को भरने वाला मेला जो पुरे प्रांत में प्रसिद्ध है।दूसरा मेला होली के दुसरे दिन से अगले पंद्रह दिवस तक चलता है। यहाँ रंग तेरस का त्योहार भी बड़े हर्ष उल्लास से बनाया जाता है ।
चारभुजानाथ जी में दो प्रसिद्द मेले भरते है जिसमे पहला है प्रतिवर्ष भाद्रपद शुकल एकादशी ( जल झुलनी एकादशी ) को भरने वाला मेला जो पुरे प्रांत में प्रसिद्ध है।दूसरा मेला होली के दुसरे दिन से अगले पंद्रह दिवस तक चलता है। यहाँ रंग तेरस का त्योहार भी बड़े हर्ष उल्लास से बनाया जाता है ।