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जब भगवान खुद अपने प्रिय भक्त नरसी मेहता का रूप धरकर नरसी जी के मेहमानों की सेवा करने आ जाते है




नरसी मेहता प्रभु द्वारकानाथ जी के अनन्य भक्त माने जाते है । वे प्रभु के सत्संग ओर प्रेम में इतना लीन हो जाते थे कि उन्हें फिर किसी भी चीज का ध्यान नही रहता था। वे एक धनवान व्यक्ति थे पर धीरे धीरे वे भक्ति में इतना लीन होने लग गए कि फिर उन्हें अपने व्यापार और संसार से मोह त्याग होता रहा , उनका ध्यान बस द्वारकानाथ जी मे ही लगा रहता था। एक दिन नरसी मेहता जी के घर संत महात्मा मंडली सहित पधारे। नरसी जी खुद भी कृष्ण भक्त थे और उन्हें कृष्ण भक्तो से भी बड़ा प्रेम था। नरसी जी सम्मान सहित मंडली को घर के अंदर ले आते है। एक समय मे नरसी मेहता जी के घर जो भी संत आता उनका यथोचित सम्मान के साथ पांच पकवानों का भोग लगाया जाता था। नरसी मेहता जी के गरीबी के दिन शुरू हो चुके थे उनके घर मे अनाज की कमी रहा करती थी । उनकी पत्नी ने नरसी जी को कहा आज तक जब भी संत महात्मा हमारे घर पधारते है हम उन्हें प्रेम से भोजन कराते है आज भी हम संत महात्मा को भोजन परोसेंगे। सो है स्वामी आप जाकर किराना लेकर आए में भोजन बनाउंगी। नरसी मेहता घर से कुछ पैसे लेकर राशन लेने निकलते है और किराना दुकान पर पहुचते है पैसे देकर समान मांगते है दुकानदार कहता है "नरसी तुम इतना सारा सामान लेने आ गए इतने से पैसे लेकर में इसमे सारा सामान नही दे पाउगा"। नरसी जी कहते है देखो भाई अभी घर पर मेहमान पधारे है । दुकानदार कहता है में तो इन पेसो में जो दे पाउगा दे देता हूं ।
दुकानदार बस थोड़ा सा समान नरसी जी को थमा देता है जिससे तो बस एक व्यक्ति का ही भोजन बनता ।
नरसी जी कुछ बोले बिना ही वो समान लेकर घर के लिए रवाना हो जाते है। रास्ते मे उन्हें भजन की आवाज आती है । आवाज के पीछे जाते है तो देखते है कि वृक्ष के नीचे एक मंडली बड़े भी प्रेममय होकर श्री कृष्ण भजन गया रही थी। भजन की आवाज कानो में जाते ही नरसी जी सब भूल जाते है और वही द्वारकानाथ जी को याद करके प्रेमपूर्ण होकर झूमने लगते है।
 इधर घर पर नरसी जी बहुत समय तक घर नही पहुचते तो उनकी पत्नी उनका बहुत इंतज़ार करती है। ओर घबराती है सोचती है संत मंडली को भी अब भूख लगती होगी।
भगवान यह सब देखकर वत्सल्यमय हो जाते है और सोचते है यह मेरा बड़ा ही अनन्य भक्त है यहां मेरे भजन करते करते घर पहुचना भी भूल गया है अब मुझे ही कुछ करना होगा।
भक्तवत्सल भगवान आज नरसी भगत का रूप बना लेते है और सारा सामान लेकर नरसी जी के घर पहुच जाते है। 
सारा समान नरसी जी की पत्नी को देते है और कहते है देवी आप भोजन बनाइये मैं बाहर संतो की सेवा करता हु ।
द्वारकानाथ जी जो कि नरसी मेहता के रूप में होते है बाहर संतो के पास जाकर उन्हें हवा करते है, पैर दबाते है।
नरसी मेहता की भक्ति का फल इन संतो को भी मिलता है जो स्वयं भगवान यहा आकर उनकी सेवा में लग जाते है। 
भोजन तैयार होता है तो भगवान खुद अपने हाथों संतो को भोजन परोसते है। संत कहते है नरसी तुम्हारे हाथों में तो जादू है भाई । तुम्हारे हाथों पहले भी भोजन किया है पर आज तो ऐसा लग रहा से जैसे भगवान खुद ही आ गए है । भगवान संतो से कहते है यह सब तो आप संतो का प्रेम है ।
शाम होती है सारे संत आराम करने के बाद विदा होते है। भगवान भी संतो के जाते ही अंतर्ध्यान हो जाते है । 
इधर नरसी मेहता की समाधि टूटती है। वे देखते है शाम हो गए । घबराते है कि मैं तो घर पहुचा ही नही समान लेकर, सारे संत घर पर भूखे होंगे । नरसी जी दौड़े दौड़े घर जाते है और देखते है संत मंडली घर पर नही होती है । घबराते हुए वो उनकी पत्नी के पास जाते है और पूछते है कि संत महात्मा कहा गए ।समान लाने में देर हो गयी , कही संत मंडली गुस्सा होकर तो नही चली गई।  मैं तो वह कीर्तन में लग गया था और भूल ही गया सामान लाना । मैं अपराधी हु । उनकी पत्नी कहती है "क्या बोल रहे है आप, आप तो खुद ही इतना समान लाए ओर सब संतो को अपने हाथों परोसा आपने" उनकी पत्नी सारी बाते बताती है ।

सब जानकर नरसी जी सबकुछ समझ जाते है उनकी आंखों से आसुओं की धाराएं बह जाती ही। उनका प्रेम श्री द्वारकाधीश जी के लिए ओर अगाध हो जाती है । 

Shri Krishna Story | मालिन चरित | मालिन पर कृपा | कृष्ण कथामृत | AdvaitManthan


जब श्री बालकृष्णचन्द्र के मुख नयन को देख मालिन को समाधी लग गई |

गोकुल की एक सुहानी सुबह.. माता यशोदा बाल गोपाल को तैयार कर श्रृंगार कर रही है प्रभु की एसी अनोखी आभा जिसे देख कर माता पुलकित होती है और बार बार कन्हैया की काजल लगाती है और कहती है सारे गोकुल-जन, गोपियां, ग्वालें तुझे देख कर नज़र लगा देते है इसलिये अब से बहुत काजल लगाऊँगी |

कृष्ण कथा | श्री जगन्नाथ जी की भक्त माधवदास जी के साथ चोरी की लीला | krishna leela story

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श्री जगन्नाथ जी की भक्त माधवदास जी के साथ चोरी की लीला | श्रीकृष्णकथा
आज की कथा है भगवान श्री कृष्ण की अपने भक्त श्री माधव दास जी के साथ चोरी की लीला भगवान श्री कृष्ण को माखन चोरी करने का बचपन से ही शौक था माधव दास जी रोज शाम को को समुद्र किनारे घूमने जाया करते थे माधव दास जी का जगन्नाथ जी के साथ सखा भाव था इसीलिए प्रभु उनके सखा बनकर प्रकट हो जाया करते थे एक दिन भगवान श्री कृष्ण आए माधव दास जी ने देखा 

माता यशोदा की लकड़ी में छुपा रहस्य देता है एक बहुत बड़ी सीख | श्रीकृष्णकथा


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माता यशोदा की लकड़ी में छुपा रहस्य देता है एक बहुत बड़ी सीख | श्रीकृष्णकथा

बात है प्रभु श्री कृष्ण के बाल्यकाल की। कन्हैया को माखन चोरी का बहुत शौक था। सब गोप ग्वालो के साथ मिलकर एक मंडली बनाई थी इस महत्वपूर्ण लीला को करने के लिए और बने खुद इस माखन चोर मंडली के अध्यक्ष ।

ganesha story | dadi maa ki kahaniya | ganesh ji ki katha | ganesh ji ki kahani | Ganesh chaturthi | ganesh murti katha

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आज के पोस्ट में एक बहुत ही सुन्दर कहानी है ganesh ji ki katha (ganesha story) जो मुझे मेरी दादी अक्सर सुनाया करती थी। तो आज की कहानी है ganesh ji ki kahani है dadi maa ki kahaniyan से ।
एक गावं था जिसमे एक सेठ अपने परिवार के साथ रहता था। सेठ का गावं और आस पास के शहर में बड़ा व्यापार था। सेठजी का गणेश जी में बहुत विशवास था। क्योकि उनका मानना था की उसके परिवार की हर खुशहाली का कारण वे ही थे।

गढबोर राजस्थान का चारभुजा जी का मंदिर

गढबोर का श्री चारभुजानाथ मंदिर 
मित्रो आज में आपको जिस स्थान के बारे में बताने जा रहा हु उसकी चर्चा भी करते हुए मुझे एक भव्यता और आनंद की अनुभूति होती है। राजस्थान के राजसमन्द जिले के गरबोर गाँव में स्थित श्री चारभुजा जी का मंदिर राजस्थान मेवाड़ के चारधाम में से एक है । मंदिर का सोंदर्य अनुपम है । यह मंदिर श्री कृष्ण जी का बहुत ही सुन्दर मंदिर है  जिसमे भगवन अपने चारभुजा स्वरुप में विराजमान है । चारभुजा का अर्थ वह जिसके चार हाथ है । प्रभु की मूर्ति काले पत्थर से बने गयी है जिसमे नयन स्वर्ण के है। गर्भ गृह के मुख्य द्वार पर सोने की परत चढ़ी हुई है और अन्दर भी अनेक स्थानों पर सोने का कार्य किया हुवा है। यहाँ आने पर अपूर्व आनंद की प्राप्ति होती है एवं मन को बहुत शांति मिलती है । आरती एवं भोग के दोरान बजने वाले नगाड़े परमात्मा के साक्षात्कार का अप्रतिम अनुभव कराते है। महीने में एक दिन अमावस्या को विशेष दर्शन रहते है तथा बड़ी संख्या में दर्शनार्थी दर्शन के लिए आते है अमावस्या के एक रात  पहले चतुर्दशी की रात को भगवन मीराबाई से मिलने के लिए जाते है । मृदुंग थाल संगीत के साथ प्रभु की एक प्रतिमा को पास ही स्थित मीराबाई के मंदिर ले जाया जाया है । यह नज़ारे अद्भुत देखने योग्य होता है । कुछ समय पश्चात प्रभु की प्रतिमा को पुनः मंदिर लाया जाता है तथा आरती की जाती है ।
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यह मान्यता है की  जब श्री कृष्ण जी ने उध्दव जी से गोलोक जाने की इच्छा जाहिर की तब उध्दव जी ने कहा की  आपके परम भक्त‌‌‍‌‍ पाण्डव और सुदामा नाम के गौप आपके गौलोक पधारने की खबर सुनकर प्राण त्याग देंगे | ऐसे में श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा से स्वयं की एवं बलराम महाराज की दो मूर्तिया बनवाई, जिसे राजा इन्द्र को देकर कहा की ये मूर्तिया पाण्डव युधिष्ठिर व सुदामा के नाम के गौप को सुपूर्द कर उनसे कहना की ये दोनों मूर्तिया मेरी हैं और मै ही इनमे हूँ | प्रेम से मूर्तियों का पूजन करते रहे, कलयुग में मेरे दर्शन व पूजा करते रहने से मैं मनुष्यों की इच्छा पूर्ण करूँगा और सुदामा का वंश बढ़ाऊंगा |
श्री कृष्ण की मूर्ति पाण्डव युधिष्ठिर को और बलदेव भगवान की मूर्ति सुदामा गौप को दे दी । पाण्डव और सुदामा दोनों उन मूर्तियों की पूजा करने लगे | वर्तमान में गढबोर में चारभुजाजी के नाम से स्थित प्रतिमा पाण्डवो द्वारा पूजी जाने वाली श्री कृष्ण की मूर्ति है तथा पास ही स्थित सेवन्त्री गॉव में  श्री रूपनारायण के नाम से स्थित  प्रतिमा सुदामा  द्वारा पूजी जाने वाली श्री बलराम की मूर्ति हैं | किदवंती है कि जब पाण्डव हिमालय की ओर जाने लगे तो श्री कृष्ण की मूर्ति को पानी में छिपा गए ताकि कोई इसकी पवित्रता को खंडित नहीं कर सके।
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कई वर्षो बाद जब राजपूत बोराना के प्रमुख गंगदेव, जतकालदेव और कालदेव ने मिलकर गढबोर की स्थापना की तब गंगदेव  को एक रात सपना आया कि पानी में से चारभुजा नाथ की प्रतिमा निकलकर मंदिर में स्थापित कर दी जाये |  यह भी सुनने को मिलता है की अत्याचारियों के अत्याचारों से बचने के लिए बोराना राजपूतों ने इस प्रतिमा को जल प्रवेश करा दिया, जब नाथ गुंसाइयों द्वारा इसे निकाल कर पूजा के लिए प्रतिष्टित कर दिया गया | युद्ध आदि से मूर्ति की रक्षा के लिए  कई बार चारभुजा जी की मूर्ति को बचने के लिए जनमग्न किया गया |मेवाड़ राजवंश ने बार-बार इस प्रतिमा की सुध ली और इसे बचाने के लिए सब कुछ दाव पर लगा दिया | महाराणा संग्रामसिह, जवानसिह, स्वरुपसिह ने तो मंदिर की सुव्यवस्था के साथ-साथ जागीरे भी प्रदान की मंदिर के पास ही गोमती नदी बहती है|
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यहाँ विशेष रूप से आरती के दौरान जब गुर्जर परिवार के पुजारी जिस प्रकार से मूर्ति के समक्ष खुले  हाथो से जो मुद्रा बनाते है और आरती के दौरान जिस प्रकार नगाड़े और थाली बजती है वो पूर्णत वीर भाव के प्रतिक है शायद इसीलिए चारभुजा जी की उपासना मुख्यत राजपूतो और गुर्जरों द्वारा विशेष रूप से की जाती थी | चारभुजा जी की आरती और भोग लगभग श्रीनाथ जी की तरह ही है किन्तु  चारभुजा जी के दर्शन सदैव खुले रहते है अर्थात उनके दर्शन का वैष्णव सम्प्रदाय की पूजा पद्दतियो की भाँती समय आदि नहीं है|
चारभुजानाथ जी में दो प्रसिद्द मेले भरते है जिसमे पहला है प्रतिवर्ष भाद्रपद शुकल एकादशी ( जल झुलनी एकादशी ) को भरने वाला मेला जो पुरे प्रांत में  प्रसिद्ध है।दूसरा मेला होली के दुसरे दिन से अगले पंद्रह दिवस तक चलता है। यहाँ रंग तेरस का त्योहार भी बड़े हर्ष उल्लास से बनाया जाता है ।
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